
दो साल पहले घाटी में 14 आम नागरिक आतंकी हमलों में मारे गए तो सेना ने 165 आतंकियों को मार दिया। ऐसा 2010 में भी हुआ था। तब 36 आम लोगों के बदले 270 आतंकी ढेर कर दिए गए थे। वैसे हरेक आम नागरिक के बदले कई आतंकी मार गिराने का यह ट्रेंड इसी दशक (2009 से 2018 के बीच) नजर आया है। वरना इससे पहले के दशक में तो सेना एक आम नागरिक के बदले में औसतन दो आतंकी ही मार पा रही है। अगर एक और दशक पहले मसलन 1989 से 1998 की बात करें तो स्थिति चिंताजनक थी। तब मारे गए आम नागरिकों और आतंकियों की संख्या तकरीबन एक-सी रहती थी। दरअसल इन तीन दशकों में आतंकियों के खिलाफ सेना की मुहिम में और भी कई ट्रेंड नजर आ रहे हैं। पहले दो दशकों में सेना के ज्यादा जवान शहीद होते रहे। इस दशक में 4 से 6 गुना कमी आई है। हालांकि ‘इस कमी’ तथा ‘पांच गुना आतंकी मारने’ का केंद्र की भाजपा सरकार से खास लेना-देना नहीं है। यह ट्रेंड तो मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के अंत (2008) से ही दिखाई देने लगा था। असल में इस दौरान सीमापार से घुसपैठ तथा घाटी में आतंकी वारदातों में ही कमी आ गई। यही वजह रही कि आम नागरिकों तथा जवानों की मौत का आंकड़ा 18 साल में पहली बार 100 से नीचे आ गया। साथ ही मारे गए अातंकियों की संख्या भी 17 साल बाद घटकर 400 से कम हो गई। वैसे अब एक बार फिर आतंकियों के खिलाफ अभियान में तेजी है। चार दिन में सात आतंकी मार दिए गए हैं। ऐसे में आतंकियों के मारे जाने की दर और बढ़ने की उम्मीद है।
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