
हाजी आज जब घर आए तो उनका पजामा नब्बे प्रतिशत गीला था। ऐसा लग रहा था कि जीवन की वैतरणी इन्हीं पजामों में पार करके आ रहे हैं। मैंने छेड़ा, ‘यार हाजी! आज तो कतई ड्राई क्लीन होकर आ रहे हो!' हाजी ने कहा, ‘मजाक मत करो महाकवि! नरक पालिका, माफ करना नगर पालिका के शानदार इंतजामों के कारण शहर में तो जैसे अघोषित बाढ़ ही आ गई है।' मैंने कहा, ‘अब ये न कह देना कि पिछले कुम्भ से नहीं धुले तुम्हारे चीकट कपड़े धोने को सरकार ही मुआवजा दे।' हाजी बोले, ‘जिनको मिलना चाहिए उनको तो ठीक से मिल नहीं रहा, हमारा तो जाने ही दो। सरकारों को इतनी ही शर्म होती तो हर बार चिंतित होने की नौटंकी छोड़कर इस बारे में सोचते कि बाढ़ को आने से कैसे रोका जाए। भगवान जाने ये डिजास्टर मैनेजमेंट के नाम पर पूड़ी-सब्जी बांटने और सरकारी लूट-खसोट से ऊपर कब उठेंगे।'
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