
2014 के नारे 2019 से पहले ही दामन से लिपट जाएंगे यह न तो नरेन्द्र मोदी ने सोचा होगा न ही 2014 में पहली बार खुलकर राजनीतिक तौर पर सक्रिय हुए सर संघचालक मोहन भागवत ने सोचा होगा। न ही भ्रष्ट्राचार और घोटालों के आरोपों को झेलते हुए सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस ने सोचा होगा। न ही उम्मीद और भरोसे की कुलांचे मारती उस जनता ने सोचा होगा, जिसके जनादेश ने भारतीय राजनीति को ही कुछ ऐसा मथ दिया कि अब पारम्परिक राजनीति की लीक पर लौटना किसी के लिए संभव ही नहीं है।
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